मैं, डा. राकेश शरद, घोषणा करता हूँ कि मैं व्यंग्य क़ी शरण में हूँ. व्यंग्य ही मेरे लिए बुद्धत्व है.समझो क़ी मैं बोध को प्राप्त हूँ. आओ तुम भी बोलो...व्यंग्यम शरणम गच्छामि !
मंगलवार, मार्च 15, 2011
Rajneesh Kumar Singh cartoonist - Delhi: Dr. Rakesh Sharad
Rajneesh Kumar Singh cartoonist - Delhi: Dr. Rakesh Sharad: "Wednesday, February 9, 2011Dr. Rakesh Sharad"
होली तो बस होली है ..............!
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...ईद मनाते मुसलमान ,
दीवाली को वैश्य भाई
मनाएं छत्रिय दशहरा ,
क्रिसमस को ईसाई |
अलग-अलग त्यौहार मनाते,
भिन्न जाति के लोग ,
कोई तो सजदा करे ,और
कोई चढ़ावे भोग |
सिर्फ एक त्यौहार है ऐसा ,
जिसमें सब हमजोली हैं ,
हिन्दू -मुस्लिम -सिख -ईसाई ,
मिलकर खेलें होली हैं | होली तो ............|
सींग कटा बछड़ों में शामिल ,
बूढ़े भी देवर बन बैठे |
पोले-पोले मुहँ सो बोलें -
भाभी खेलो होली है ..........होली तो ..............|
दिल की उमंग ,नयनों की बोली है ,
प्रेमी की पिचकारी ,
दिलवर की चोली है ,
भाभी की मनुहार ,
देवर की हंसी-ठिठोली है .....होली तो...............|
देखें कहीं और लगे वहीँ ,
नयनों की ऐसी बोली है|
कमसिन जिस्मों की देहरी पर
फागुन ने रची रंगोली है .........होली तो ..............|
होली है प्रेम और मिलाप की ,
उनकी और आपकी |
लड़के और बाप की ,
थोड़े -अनापशनाप की,
पुण्य और पाप की ,
प्रेम-पश्चाताप की
कलह और मिलाप की |
हंसी और विलाप की |
तान और आलाप की .............होली तो ..........|
होली है देवर भाभी की,
ताले और चावी की |
हिंदी और पंजाबी की ,
चंगे और शराबी की ,
फकीरी और नबाबी की ,
सूफी और कबाबी की,
रूप रंग मायावी की, और..
उनके गाल गुलाबी की ...........होली तो ..........|
हमारे पास ,
साहित्य का रंग है ,
कविता की चंग है ,
कलम की पिचकारी में,
व्यंग ही व्यंग है ,...ऊपर से
तुम्हारा जो संग है |
कलाई पर काव्य का कलावा ,
मस्तक पर चुम्बन की रोली है |
मनहूसों को खास रियायत देने को ,
हंसी -ठहाकों की एक दुंका ,
राकेश शरद ने खोली है..........होली तो ...........|
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