मैं, डा. राकेश शरद, घोषणा करता हूँ कि मैं व्यंग्य क़ी शरण में हूँ. व्यंग्य ही
मेरे लिए बुद्धत्व है.समझो क़ी मैं बोध को प्राप्त हूँ. आओ तुम भी
बोलो...व्यंग्यम शरणम गच्छामि !
ये जो अन्तराष्ट्रीय स्तर के रास्ट्रीय जनसेवक हैं जिन्हें आप प्यार से ऍम.एल.ए.या ऍम .पी.कहते हैं ,
वो महान दरख़्त हैं जिनकी छत्रछाया में अपराध व् भ्रस्टाचार कि अमरबेल पनपती है |
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