Vyang


                                                आशीर्वचन 

              कृष्णाय वासुदेवाय ,हरे परमात्मने .........! हमें बड़ी प्रसन्नता है की हमारे व्यंग-कवि केवल व्यंगकार ही नहीं हें,ये अन्य प्रकार की कवितायेँ भी लिखते हें ,लेकिन एक प्रसिद्धी हो गई कि ये व्यंगकार हें ,व्यंग कवि हैं | इन्होंने भी एक बेबसाईट बनाई है|सभी बेबसाईट के विजिट करने वालों को हमारी मंगलकामनाएँ ! इसमें इनका विचार है कि हमारे द्वारा जो समाधान प्रस्तुत होंगे , इनके प्रश्नों के , उनको भी स्थान दिया जाय | हमें बड़ी प्रसन्नता है आप लोगों कि सेवा करने का ये एक और माध्यम हुआ | इस समस्त आयोजन के लिए हम अपनी हार्दिक शुभकामनायें प्रस्तुत करते हैं | धन्यवाद ! जय श्री कृष्ण ............!                                

                                          सदगुरुदेव श्रद्धेय स्वामी गुरु शरणानंदजी महाराज









                                                                 जै हो!

               आजकल मौसम बड़ा मदमस्त हो गया है। दोपहर में गुनगुनी धूप, सुबह-शाम को शीत और रात्रि को प्रीत। वातावरण में मस्ती ही मस्ती। ब्याह-शादियों की धूम। चारों ओर दावतें ही दावतें। धन, बल, रूप का बहुआयामी प्रदर्शन ही प्रदर्शन। बड़े-बड़े श्यामवर्णी फेयर एण्ड लवली पोत-पोत कर गोरे दिखने का प्रदर्शन कर रहे हैं। नकली रूप, नकली बाल, नकली धन, नकली जेवरात पहन कर शहर, गांव की रूपसियां और उनके पीछे बच्चों की नाक पोंछते उनके आज्ञाकारी पति लोग, उनको झिड़कते, खिसियाते बड़ी आसानी से दिखाई दे जाते हैं
               जब से महंगाई बढ़ी है खाने वालों के स्टाइल भी बदल गये हैं। तुलसीदल व गंगाजल के ग्रहण करने वाले अपने मित्र बूटीनाथ व मैना भाभी, आजकल पंडाल में घुसते हैं। पहले निरीक्षण करते हैं कि महंगे-महंगे सौदे किस पोजीशन में लगे हुएहैंऔर फिर प्लेट लेकर सबसे पहले आधी प्लेट में प्याज व टमाटर रखते हैं। एक दावत में जाने का मतलब प्याज-टमाटर का एक महीने का कोटा पूरा। अब मैं समझ पाया कि बूटीनाथ पर प्याज-टमाटर आदि सब्जियों के रेट बढ़ने का असर क्यों नहीं हुआ |
              पेट्रोल का रेट कितना ही बढ़ जाए उन पर कोई असर नहीं। वे अपनी गाड़ी गैरेज से रोज निकालते हैं, उसे भलीभांति धो-पोंछ कर फिर दो-चार बार हार्न बजाते हैं ताकि कालोनीवासी समझ जाएं कि बूटीनाथ कहीं जा रहे हैं और गाड़ी फिर गैरेज के अंदर।
             चूंकि वे बड़े आदमी हैं और उनके संबंध वैसे ही बड़े आदमियों से हैं सो कहीं भी आना-जाना सेटिंग पर चलता है। कभी किसी की गाड़ी में लिफ्ट में कभी किसी की में। जो उन्हें लिफ्ट देता है वह धन्य हो जाता है कि इतना बड़ा समाजसेवी उनकी गाड़ी की सेवा ले रहा है। राष्टÑीय स्तर पर भी मौसम बदल गया।गणतंत्र दिवस का पूर्वाभास होने लगा है। शहर में जगह-जगह कूड़ों के ढेर चाहे हटें या न हटें, नालियों में गंदा पानी भरपूर उछाल मारता फिरे। शहर की खुदी-खुदाई सड़कें अपने विकास की कहानी कहती फिरें। बावजूद इसके सड़कों के किनारे समाज के चिरकुट सेवकों के बड़े-बड़े होर्डिंग आपको बधाई देते बड़े आसानी से दिखाईदे जाएंगे। वो भी अपने बड़े-बड़े लीडरों के साथ हाथ जोड़ते हुए।
              मजे की बात ये होती है कि बड़े लीडरों के फोटो एक कोने में छोटे से लगे होते हैं, जबकि लोकल चिरकुट बड़े आकार में अपने पूरे नाम, उपनाम, पते, मोबाइल नम्बर के साथ आपको गणतंत्र दिवस की बधाईदे रहे होते हैं। मैं सोचने पर विवश हो जाता हूं कि इन सेवकों को राष्टÑ की कितनी चिन्ता है? आप पूर्णरूपेण स्वतंत्र हैं, आप कुछ भी करें, कैसा भी करें, कभी भी करें, बस राष्टÑ को याद करते रहें। आप तिरंगा फहरा कर याद करें।आप तिरंगे का विरोध कर राष्ट्र को याद करें।बस कुछ करें अवश्य। कोईरोकने वाला नहीं आपको। इतने बड़े प्रजातंत्र में सब कुछ चलता है। जिन लोगों ने देशको आजाद कराया वे भूखे रहे, नंगे रहे, जेल में रहे तब आप स्वतंत्र हुए। यह हमारा वायदा है कि हम भी तुम्हें उन्हीं परिस्थितियों में पहुंचा कर ही दम लेंगे। जै हो....|

                                                       

                                          x------------x


                                         

                                                   बेचारा राजा अनाड़ी

                   मुझे आजकल कुछअच्छा नहीं लग रहा। खासतौर पर इन विपक्षियों के व्यवहार को लेकर। ये सब मिलकर संसद ही नहीं चलने दे रहे। आरोप लगा रहे हैं कि सरकार का एक राजा चोर है। वैसे तो उसका नाम ही राजा है सोचो फिर वह चोर कैसे हो सकता है? सरकार •ाी जानती है कि वह चोर है।उसकी पार्टी •ाी मानती है कि वह चोर है। अब जरा सोचो यदि वह चोर न होता, केवल राजा ही होता, तो नेता कैसे बनता।ऐसे अनेक लोग हैं, जिनका नाम राजा है लेकिन वे चोर नहीं हैं। इसलिए सिर्फएक बैंड में बाजा बजा रहे हैं। नेता बनने के लिए राजा व चोर का सामंजस्य होना अति आवश्यक है। ये ईश्वर की अपार कृपा रही कि उसके साथ ये संगम रहा और वह केंद्रीय मंत्री बन बैठा।
                  मित्र बूटीनाथ बड़े नाराज हैं ये ड्रामा देखकर। वे कह रहे थे कि शरद, बतलाओ कि पक्ष-विपक्ष में कौन चोर नहीं है। राजा बेचारा अनाड़ी निकला कि अपनी मंडली के चक्कर में फंस गया। राहु-केतु ने मिलकर उस बेचारे को कहीं का नहीं छोड़ा, वरना वह सही चालें चल रहा था। मान लो सरकार जेपीसी की जांच को राजी  हो जाए, तो क्या होगा? वही ढाक के तीन पात। उसे फांसी तो होने से रही। अरे, जिनको फांसी होनी थी उन्हें कौन सी फांसी हो गई? मजे से जेल में मुर्ग-मुसल्लम खा रहे हैं।अजमल कसाब ने पूरी दुनिया के सामने मुंबई में नरसंहार किया उसे क्या हुआ? सरकार चाहती है कि उसका उसकी बहादुरी के लिएसंरक्षण किया जाए।जिसे उसके घिनौने दुष्कर्म के कारण सरेआम बिना मुकदमा चलाए चौराहे पर फांसी पर चढ़ाना चाहिए था, उस दुष्टात्मा का सरकार व उसके मंत्री बचाव कर रहे हैं।
                 फिर हमारे राजा ने तो कुछ  नहीं किया।उसने तो वही अपराध किया है, जो नगर निगम व यूनिवर्सिटी का एक बाबू काम कराने के ऐवज में रिश्वत लेकर करता है। रिश्वत लेना-देना bhartiy का चरित्र बन चुका है।इसमें घबराने की कौन सी बात आ गई। मेरे विचार से केंद्र को विपक्ष की मांग मान लेनी चाहिए। अरे, हमारी कांग्रेस पार्टी में तो एक से एक आला मंत्री वकील हैं। वे सफेद को काला और काले को सफेद करने की कुब्बत रखते हैं।
               मेरे विचार से सरकार को •ाारी विरोध के बावजूद उसे फिर से अपने मंत्रिमंडल में जगह देनी चाहिए ताकि वह फिर से देश की सेवा कर सके। राजा में देश का राजा बनने के तमाम गुण मौजूद हैं।



















X--------X


   

                                                बूटीनाथ का मौन व्रत

आजकल अपने मित्र बूटीनाथ मौनव्रत साधे हुएहैं। मैंने फोन किया उत्तर मिला- हूं-हां, हूं-हां। फिर मैंने मैना भाभी को फोन किया, पूछा माजरा क्या है। फोन पर कौन हूं-हां कर रहा है। उन्होंने मुझे डिटेल में समझाया कि संघ के बयान और कांग्रेस के हिंसक जवाब से आपके मित्रवर डर गये हैं। उनका इस मुद्दे पर अपने पड़ोसी से विचार-विमर्श हुआ। विचारधाराएं भिन्न होने से उसने कांग्रेसी लहजे में उन्हें परिणाम भुगतने की चेतावनी दे डाली। बस! फिर क्या था वे सदमे में आ गये।
पहले तो बड़बड़ाने लगे- ये ओबामा क्या हमारे लोकतंत्र की तारीफ कर गये कि एक ने बयान दिया तो दूसरे ने फरमान दिया। ना इसमें संयम ना उधर ही कुछ नियम। इधर माचिस जलाईउधर खून खौला। सोते शेर को छेड़ दिया। उसने गर्दन घुमाई- आंखें तरेरी- फूंक दिया विरोध का बिगुल। चलो इसी बहाने सोते शेर जाग गए। जाग जाएं तो अच्छा है बहुत दिनों से अपनी-अपनी मांदों में पड़े-पड़े खर्राटे भर रहे थे और भाईसाहब। इतना बड़बड़ाते हुए आपके मित्रवर मौनस्थ हो गये।दिन भर खिड़की से पड़ोसी के घर को देखते रहते हैं कहीं कांग्रेसी स्वामिभक्तों को लेकर न आ जाएं।
मैंने बहुत विचार मंथन किया। आरोप देखे। आरोप लगाने वाले को देखा। जिस पर आरोप लगाए उसको देखा। नेता-नेता पर आरोप व बयानबाजी कर रहे हैं। जनता हमेशा की तरह मौन है। वे भ्रष्टाचार कर रहे हैं, जनता मौन है। वे जनता को धोखा दे रहे हैं, जनता मौन है। नेताओं की अदला-बदली हो रही है, जनता मौन है। भ्रष्टाचार को दबाने और हटाने को भ्रष्ट राजनीतिक षड्यंत्र व शतरंज बिछाई जा रही है-जनता मौन है। उनको ऐसा नहीं कहना था। यदि कुछ कहना ही था तो हल्का-फुल्का कह देते लेकिन उन्होंने तो चक्र सुदर्शन ही चला दिया और वो भी मुखिया पर। ना बाबा ना। किसी छोटे-मोटे नेता पर कह देते लेकिन उन्होंने भी चुना तो मुखिया को। बालक जाग गये। आधी नींद में किसी को छेड़ दो तो वह बड़बड़ाने ही लगता है। सो सम्हालो। दीवाली हो कर चुकी है। बहुत सारी माचिस-पटाखों के खाली खोके बचे रहे जो जगह-जगह जलाने के काम आ रहे हैं। विरोध का विरोध और सफाई की सफाई। लोकतंत्र इसी का तो नाम है। लेकिन मुझे चिंता बूटीनाथ की खाए जा रही है। वे ना जाने कब भयमुक्त होंगे।

X--------X


                                                    धन्यवाद- जयहिन्द   !


•ागवान जो करता है, •ाला ही करता है।अ•ाी तक मुझे अपने देश का महत्व ही नहीं पता था कि कितना महान है यह। मैं इसे सिर्फ योग-•ोग और रोग का ही देश मानता आया था।
•ाला हो अमेरिकी राष्टÑपति बराक ओबामा साहब का कि उन्होंने मेरी आंखें खोल दीं। किस लहजे में ओबामा साहब ने हमारे देश की महानता की आरतियां गाईं- •ाारत एक विश्व शक्ति, •ाारत मेहनती व काबिल लोगों का देश, साम्प्रदायिक सद्•ााव का देश, श्रेष्ठ राजनेताओं का देश, •ाारत विश्व की श्रेष्ठतम ताकतवर अर्थव्यवस्था वाला देश, •ाारत विश्व का सबसे सफल प्रजातंत्र! अहिंसा का पुजारी •ाारत....।
लेकिन जैसे ही ओबामा साहब ने नाइजीरिया यात्रा के लिएअपना कदम हवाई जहाज में रखा कि केंद्रीय सरकार ने ईमानदार-होनहार युवा नेताओं का पार्टी निकाला कर दिया। सुना है कि कुछ दिन यह प्रक्रिया जारी रहेगी।
मैं सोच •ाी नहीं सकता कि देश के इतने बड़े नेता एक साथ इतने बेईमान-धूर्त व नाकारा हो सकते हैं। कामनवेल्थ गेम्स में हमारे कलमाड़ी साहब की आर्थिक जादूगरी के किस्से घर-घर में लोरियों की तरह गाए जाने लगे और ऐसे जादूगर का पार्टी निकाला-ईमानदारी पर कुठाराघात है।
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के मुख्यमंत्री साहब ने मान लो अपने बेघर रिश्तेदारों और अपने लिए थोड़ी बहुत जमीन या इलेट-फिलेट ले लिए, तो कौन सा •ा्रष्टाचार हो गया। अरे मूर्खों! •ा्रष्टाचार वही करता है, जिसमें ताकत होती है, जिसमें ऊपर के नेताओं की जी-हुजूरी का इल्म होता है। महाराष्टÑ तो महान प्रदेश है, जहां पवार साहब जैसे दिमागी पुतले राजनीति करते हैं।
केंद्र सरकार की एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि ओबामा साहब को ताज दिखाने आगरा क्यों नहीं लाया गया? सौंदर्य की नगरी आगरा। चौर्यकला का पर्याय आगरा। चेन स्नेचिंग की महान कला में पारंगत ढेरों कलाकारों से सुसज्जित आगरा। ग्रीन-क्लीन आगरा। हाई-वे के डिवाइडरों पर सूखते गोबर के उपलों की कलाकृति वाला आगरा।
सोचो क्या सीन होता, जब आगरा के विश्व प्रसिद्ध चेन-स्नेचर •ाारी सुरक्षा के बीच से धड़धड़ाती मोटर साइकिलों पर सवार होकर मिशेल ओबामा के गले की चेन पर झपट्टा मार उड़न छू हो जाताऔर यहां की कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अपने थाने में रिपोर्ट लिखने से मना कर देती! आखिर देश की प्रतिष्ठा का जो प्रश्न है। •ाारत महान का प्रश्न। सुपर पावर •ाारत को विश्व शक्ति बनने से अब कोई नहीं रोक सकता। धन्यवाद- जयहिंद।
















X--------X



                                                    दीवाली का सर्वेक्षण

बड़ा शोर सुनते थे दिल का.....। आई दिवाली, आ रही रही है दिवाली, गई दिवाली।ऐसी होगी- वैसी होगी, अब पता चला ऐसी हुई। चारों ओर चकाचौंध। दुकानें दुल्हन की तरह सजाई गईं। लाइटें ही लाइटें। चमचमाते साइनबोर्ड। इनाम व स्कीमों से पटे पड़े बैनर्स, एक के साथ एक फ्री। इसके साथ ये तो उसके साथ वो। पैसे हैं तो लो, नहीं हों तो फिर लो ही लो। जीरो परसेंट फाइनेंस। बस तुम ले लो। दीवाली को यादगार बनाओ।
धनतेरस •ागवान धनवंतरि का दिन। इन दिन आधुनिक धनपतियों के यहां साक्षात लक्ष्मी प्रकट हुर्इं। मैंने एक छोटे-मोटे धनवंतरि यानी कि डाक्टर को बधाईदी, तो कहने लगे शरद- ये बधाई-फधाई दीवाली के बाद देना अ•ाी तो दुकान मरीजों से पटी पड़ी है। डेंगू, चिकिनगुनिया-मुनमुनियों से मारे चिलगोजों में से मिंगी खींच लूं। बड़े-बड़े धनवन्तरियों के तो कहने ही क्या। अस्पताल की सीढ़ियों से लेकर बरामदे, कमरे, आफिस, छतों तक मरीजों से पटे पड़े थे। इस बार डाक्टर्स को ये लक्ष्मी डेंगू स्वरूप में प्रकट हुईं। यह पता नहीं कि कहां तक सत्य है कि दुकानदार व खरीदार दोनों विलापावस्था में थे। ताम-झाम बराबर थे, लेकिन ग्राहक आता-तमाशा देखता और चला जाता था।
कुछ •ाी हो •ाीड़•ााड़ बराबर थी। जगह-जगह जाम, सड़क के किनारे जाम। कुछ मनचलों के घरों में जाम। दीपावली का त्योहार खाने-पीने का त्योहार है। घरों में तरह-तरह के पकवान बनते हैं लेकिन सुबह ही सुबह जलेबी-कचौड़ी की दुकानें आम दिनों से ज्यादा आबाद दिखीं। कारण समझ में नहीं आया।
इस बार मिठाई बनीं कम, बंटी ज्यादा। एक डल्ला किसी के आया, उसने उसे खोला और देखा फिर आगे मित्र के घर पास कर दिया। मित्र ने अपने मित्र को। अनुमान लगाया कि एक डब्बा 10-20 घरों में पास हो गया।मजे की बात ये कि जिसे मिठाई•ोंट करो, वह मुंह बिचका कर मन ही मन बुदबुदाता क्या कुछ और नहीं था बाजार में जो ये उठा लाया। कुल मिला कर ये पासिंग गेम अच्छा लगा।
मित्र बूटीनाथ तो सारी रात टकटकी लगाए द्वार खोल बाहर बैठे रहे, लेकिन उन्हें लक्ष्मी जी कहीं नहीं दिखाई दीं। वे पूरी तैयारी में थे अलबत्ता एक झपकी कमाल कर गई, किसी चौर्यकाल के विशेषज्ञ ने उनके यहां अपनी कला का प्रदर्शन कर दिया।















X--------X


शु•ा धनतेरस, शु•ा दीपावली!

सच में कलियुग की इन्तिहा हो गई है। आप कितना ही शु•ा और अच्छा कार्य कर लें, बुराई ही बुराई मिलेगी। हमारे नागरिक एवं व्यापारी रात-दिन एक कर समाज सेवा कर रहे हैं और प्रशासन एवं पुलिस है कि उन्हें कोई काम करने ही नहीं दे रहा।
एक •ाला आदमी गाय-•ौंस के बिना •ाी आपको येन-केन प्रकारेण दूध की सप्लाई दे रहा है और ऊपर से प्रशासन व पुलिस छापे पर छापे मार रहे हैं। उसका जीना हराम किए दे रहे हैं। चौराहों पर दूध से •ारी टंकियां उल्टी जा रही हैं। ये बात कुछ हजम नहीं हो रही है।
दीपावली का त्योहार साल में एक बार आता है। व्यापारी आस लगाएरहते हैं कि चार पैसे कमाएंगे। ये पुलिस प्रशासन का गठजोड़ है कि उसे काम ही नहीं करने दे रहा। तरह-तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं बेचारों पर खोवा नकली है। रंग हानिकारक है। घी नकली है।
अब आप ही सोचें कि ऐसी परिस्थितियों में कोई समाज सेवक काम कैसे करे? क्या ओढ़े क्या बिछाये? मैं मान लेता हूं कि खोवा नकली है, रंग, चिकनाई सब नकली है, लेकिन ये उन व्यापारियों का कौशल नहीं है कि उस नकली से •ाी वो इतनी सुन्दर मिठाई बना रहे हैं जो शुद्ध मिठाई से ज्यादा आकर्षक है।
मैंने एक दुखी मिठाईवाले से पूछा कि ये जो आप तैयार कर रहे हैं वो तो स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद है। वो बोला लेखक जी ये आपसे किसने कहा?
नकली के फायदे सुनो- कम लागत में असली से •ाी असली। जब कुछ नहीं मिल रहा तो क्या करें? नकली खाने से शरीर में लड़ने की शक्ति पैदा होती है। यदि शरीर न लड़ पाए तो फिर बेकार बैठे डाक्टरों को काम मिलता है।हमारी नकली प्राडक्ट से सरकारी कर्मचारियों को सुविधा शुल्क मिलता है। हमारी वजह से चपरासी से लेकर मंत्री तक खुशहाल हैं।ऊपर से समाज को उच्च श्रेणी की निकृष्ट मिठाई।
समाज के ये ऐसे कार्यकर्ता हैं जो बड़े ही शांत •ााव से समाज को हर कीमत पर माल उपलब्ध करा रहे हैं। नाकारा सरकार का बचाव कर रहे हैं। दीपावली जैसे त्योहार को यादगार बना रहे हैं।
तो हे! जनते! घाटे, पचड़े में पड़ते हो ये नकली है, ये असली है। सब बेकार की बातें हैं। खाए जाओ। जमकर खाओ। तब तक खाओ, जब तक कोई प्राइवेट अस्पताल आपको •ार्ती न कर ले। जो हो रहा है होने दें.जम कर खरीदारी करो। जेब को ढीली करो ताकि पेंट आपकी कमर पर ठीक से टंग सके।
छोड़ो! धनतेरस मनाएं। जमकर खाएं-पिलाएं। शु•ा धनतेरस-शु•ा दीपावली।













X--------X


लक्ष्मी वाहन उल्लू

दीवाली •ाी क्या त्योहार है चारों ओर चकाचौंध, रोशनी ही रोशनी। रंग-बिरंगे बाजार, दुकानदार अति व्यस्त वहीं खरीदार पस्त। घरों में एक दो सदस्य डेंगू से अस्त-व्यस्त। फिर •ाी दीवाली है मस्त-मस्त।
चारों ओर मजा ही मजा छा रहा है। जिनको आ रहा है उनको लगातार आ रहा है और जिनको नहीं आ रहा, उनको नहीं आ रहा है।अब अपने मिठाई वालों को ही ले लो, जब से दुकान खोली थी, दीवाली, होली पर सो ही नहीं पा रहे थे।इस बार मजे में हैं।उन्होंने बड़ी दिलदारी दिखाकर कुन्तलों मिठाई जानवरों को दान कर दी। आज स्थिति यह है कि ग्राहक आता है- मिठाईदेखता है फिर मिठाई वाले को देखता है, फिर अखबार में उसका नाम मिलाता है और आगे बढ़ जाता है।
सोने-चांदी की दुकानें जगमगा रही हैं। सुन्दर आ•ाूषण, सुन्दर-सुन्दर कन्याएं, खूबसूरत मालिक, सब मिलकर दरवाजे को देख रहे हैं- कोई आंख का अंधा और गांठ का पूरा फंसे, तो सही।
ऐसा नहीं कि इन हाई-फाई दुकानों पर कोई आ ही नहीं रहा है।इनके ग्राहक वीआईपी हैं। लम्बी-लम्बी गाड़ियों में बैठीं खूबसूरत मॉडल जैसी सुन्दरियां जो सं•ावत: बड़े-बड़े सरकारी अफसरों, ठेकेदारों, नेताओं से संबंधित हैं। लाल-नीली बत्तियों वाली गाड़ियों में प्राय: समाज के उच्च श्रेणी के ईमानदार लोग चलते हैं या फिर कार, मोटरसाइकिलों पर ऐसा युवा वर्ग आता है जो कार-बच्चे-युवतियों और जंजीरें छीन कर रातों रात अमीर बना है। आम जनता वो ही मिट्टी के दीपक, मिट्टी के लक्ष्मी-गणेश, हनुमान जी, खील-बताशे, रुई, मोमबत्ती की खरीदारी में मस्त है। •ाीड़ के रेले में दीवाली के मेले का आनन्द प्राय: गरीब जनता लेती है।
तैयार हो जाओ, लक्ष्मी को पटा लो।पूजा करो। द्वार खोल कर रखना। देखते रहना निश्चित रूप से उल्लू वाहन जी अंधकार में चक्कर लगा रहे होंगे।अब चलती तो उल्लू की है। लक्ष्मी जी लाख कहती रहें, कुछ नहीं होने जाने का।उल्लू जहां लैंड करेगा, वहां ही धन की वर्षा होगी। साहब से ज्यादा उनका ड्राइवर ताकतवर होता है।
पिछली साल मित्र बूटीनाथ ने अपने घर के सारे दरवाजे खोल दिये थे और उनको आ गई नींद।सुबह देखा कि उनके चोर मित्र ने उनके घर चौर्यकला का प्रदर्शन कर दिया था और लक्ष्मी उनके बगल वाले के घर स्थापित हो गईं। इस साल वे स•ाी दरवाजे बंद रखकर पूजा की तैयारी कर रहे हैं।ईश्वर करे उल्लू आपके द्वार पर लक्ष्मी को लेकर लैंड करे।













X--------X



पुरुषों का सम्मान समारोह करवाचौथ

मेंहदी वाला, चूड़ीवाला, मिठाईवाला, कपड़ेवाला, सोनेवाला, चांदी वाला, सब नारी के चक्कर काट रहे हैं। फिर दिमाग से पैदल यह आदमी उसका चक्कर काटे, तो कौन सा आश्चर्य है? हे! गणेश! नारी को लम्बा जीवन दे।
करवाचौथ पुरुषों का सबसे बड़ा त्योहार है जो कि महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। पूरी साल में सिर्फ यह एक दिन ही ऐसा है जब वह स्वयं को थोड़ा गौरवान्वित महसूस करता है।वरना पूरी साल जानते ही हैं आप कि इस पति नामक प्राणी की क्या गति होती है। प्रात: झकझोर कर उठाने से लेकर रात्रि ताने खा-खाकर सोना और सोने में •ाी भाांति-भाांति से बर्राने की क्रिया करना उसकी नियति है।अगले को चूं-चपड़ करने का तो मौका ही नहीं दिया जाता।
मुझे आज तलक समझ में नहीं आया कि वैसे तो यह आदमी अपने को अकल का पुतला समझता है लेकिन स्त्री के समक्ष शादी का प्रस्ताव रख पूरी जिन्दगी नरक ‌‍‌‍‌‍भोगने की नासमझी कैसे कर बैठता है?
चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात। वाह! क्या है बात! स्त्री को नासमझ कहता है और नासमझी खुद करता है।एक होता है आत्मसमर्पण, दूजा होता है साष्टांग आत्मसमर्पण। आत्मसमर्पण करने के बाद आरम्भा होता है जुल्म सहने का अनवरत सिलसिला।आप ही बताएं आपको कोई शादीशुदा हंसते हुए मिला है? बेचारे को सुबह ही सुबह नहला-धुला कर थोड़ी सी सानी देकर हाथ में काम की एक लम्बी लिस्ट थमा कर घर से बाहर धकेल दिया जाता है। चढ़ जा बेटा सूली पर भाली करेंगे राम।जब बोया पेड़ बबूल का, होंगे कहां से आम।
मित्रो। ये बेचारा किस्मत का मारा पूरी जिन्दगी आंख पर विवाहित होने की पट्टी बांधकर और पीठ पर गृहस्थी का बोझ लाद कर कोल्हू के बैल की मानिन्द घूमता ही रहता है। मुझे आज तक यह समझ में नहीं आया कि इस करवाचौथ के पर्व का आविष्कार किस देवता या देवी ने किया? यह पुरुष के पक्ष में है या नारी के। साल के 364 दिनों की करिश्माई के बाद कार्तिक की चौथ के दिन पुरुषों का अन्तर्राष्टÑीय सम्मान समारोह? वाह! करवाचौथ के आविष्कारक को मैं प्रणाम करता हूं।
वैसे तो सारी सृष्टि ही नारी के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन इस विशेष दिन तो देश की सारी की सारी अर्थव्यवस्था नारी का चक्कर लगा रही है। कुम्हार से लेकर बड़े-बड़े सर्राफ तक नारी की जरूरतों का ध्यान रख रहे हैं। और फिर क्या, मेंहदी वाला, चूड़ीवाला, मिठाईवाला, कपड़ेवाला, सोनेवाला, चांदी वाला, सब नारी के चक्कर काट रहे हैं। फिर दिमाग से पैदल यह आदमी उसका चक्कर काटे, तो कौन सा आश्चर्य है? हे! गणेश! नारी को लम्बा जीवन दे।












X--------X


                                                           रावण ब्रिगेड

अपने देश में सुकून की बात ये है कि यहां अयोध्या •ाी है और लंका •ाी। अफसोस की बात ये कि अयोध्या एक है और लंकाएं हर मोहल्ले में हैं। राम एक वो •ाी मुकदमा लड़ने में व्यस्त हैं, जबकि रावणों का राज ही राज है।
बहुत दिनों से प्रतीक्षा में थे •ाारतवासी। आखिर ये रावण कब मरेगा। ये लो! रावण •ाी मर गया। अकेला नहीं, अपनी पूरी फायर ब्रिगेड के साथ। मेघनाद, कुम्•ाकरण एवं पूरी लंका के राक्षस वीरों समेत। क्या आतिशबाजी हुई थी। रामजी व लक्ष्मण के वाणों से कैसी स्पार्किंग हुई थी। ये अच्छा था कि उस समय टोरंटो पावर नहीं थी, वरना ये स्पार्किंग रुक •ाी नहीं पाती।
अब सब कुछ नीट एण्ड क्लीन हो जाएगा। ठीक आगरा क्लीन की तरह। क्योंकि रावण बुराई का सबसे बड़ा प्रतीक था। राजा के स्तर तक बुरा। अगर बुरे •ाी थे साथ में लेकिन छोटे कुम्•ाकरण, मेघनाद स्तर तक के। सबका खात्मा कर दिया राम, लक्ष्मण के वाणों ने। लंका खाक हो गई। कुछ •ाी नहीं बचा। बचा तो सिर्फ राख के कंकाल। बुराई का कंकाल।
रामजी •ाूल गए कि ये जो बचे हुएकंकाल हैं कोई मामूली कंकाल नहीं, रक्तबीज हैं, इनसे आज तक रावण पैदा हो रहे हैं। पहले गनीमत थी कि रावण एक ही था लेकिन कंकाल से चिपटी एक-एक रक्त बूंद से आज डेगूं के कीटाणुओं की तरह हर गली कूचों में रावण, कुम्•ाकरणों की लाइनें लग चुकी हैं।
अपने देश में सुकून की बात ये है कि यहां अयोध्या •ाी है और लंका •ाी। अफसोस की बात ये कि अयोध्या एक है और लंकाएं हर मोहल्ले में हैं। राम एक वो •ाी मुकदमा लड़ने में व्यस्त हैं, जबकि रावणों का राज ही राज है।
कल खेल हुए। लंका सजी। ऐसी सजी कि हाय! हाय! मची। ये रावण इतने •ाूखे थे कि सत्तर हजार करोड़ खा गए।अब इनकी जांच होगी। जांच में फिर खाएंगे। एक रावण से फिर रावण पैदा होंगे। यानि कि रावण पैदा होते ही रहेंगे। राम ढूंढे से •ाी नहीं मिलेंगे। मजा ये कि इस कलियुग में रावण राम को ढूंढ रहे हैं। राम डरे हुए हैं। रावण गली-गली, कूचों-कूचों सीना ताने घूम रहे हैं। कुम्•ाकरण चिंघाड़ रहे हैं। आम आदमी पशोपेश में है कि करे तो क्या करे। आज यदि जीना है तो जोर से बोलना पड़ेगा- जय रावण की।










X--------X
 
 
                                                हाउसफुल
आजकल जिधर जाओ उधर ही हाउसफुल का बोर्ड लटका हुआ है। सड़क पर चलो सड़क हाउसफुल। श्राद्ध किए, तो श्राद्ध हाउसफुल। रामलील आरम्भ हुई, तो वह भी हाउसफुल। जनकपुर, रामबरात, भरत मिलाप हर जगह हाउसफुल। साथ-साथ में महापुरुषों की जयंतियां हाउसफुल।
डेंगू हाउसफुल। हर घर में डेंगू। हरअस्पताल में डेंगू। अस्पताल डेंगूफुल। मरीज मर रहा है। कहीं-कहीं डाक्टर भी मरीज हो रहे हैं। जिन अस्पतालों में मरीज जाना नहीं पसन्द करते वे आजकल परमानेंटली वहां निवास कर रहे हैं। मरीज मूल हैं, तो डाक्टर कूल हैं।
इधर कॉमनवेल्थ के आगमन से प्रशासन की हिल गई चूल है। पग-पग पर भूल ही भूल है। कुल मिलाकर अक्टूबर में अप्रैल फूल है। ये महीना त्योहारों का महीना है। बहुत कष्ट उठाया बारिश झेली, फिर गंगा-जमुना जीभर के फैली।ऐसी फैली की समस्त देशवासी ही फैल गए। बिल्डिंग हिल गईं। जिधर देखो उधर ही पानी। लोगों के बर्तन भांडे तैरने लगे। कार-बस जो प्राय: सड़Þकों पर चलतीं थीं, अब तैरने लगीं। ये प्रकृति का आशीर्वाद था या कोप कोई समझ ही नहीं पा रहा था।
नवरात्र चल रहे हैं। पात्र-अपात्र पूजा-अर्चना कर रहे हैं। जिसे देखो वो ही देवियों को मनाने में जुटा पड़ा है। घर की देवी भले ही नाराज हो जाए, बाहर की देवी खुश होनी चाहिए। येन-केन-प्रकारेण बिना खाए पिये पटा रहे हैं। कोई-कोई, तो लौंग के जोड़े पर रह रहा है, तो कोई मात्र हवा खा रहा है। कोई-कोई तो इतना मौन है कि घरवाली देवी को देख कर इशारों से पूछता है कि तू कौन है? कमाल का गणित है। बाहर वाली देवी को पटाने में भूखे-प्यासे हैं जबकि घर वाली तरह-तरह के व्यंजन बनाती है फिर भी उससे नाराज हैं। मेरी समझ में आज तक नहीं आया कि इसका क्या राज है?
नई उमर के लड़के-लड़कियों की तो मौज ही आ गई। लड़के देवियों को पटाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहे। जो नौजवान पूरे साल मंदिर की ओर मुंह भी नहीं करते थे, इन नौदुर्गे के सीजन में पूजा-पाठ में ऐसा प्रेम का पाठ पढ़ते हैं कि पंडित तक भी शर्माने लगते हैं?
नौजवानों की इसी पूजा का परिणाम है कि कुछ देवियां इतनी प्रसन्न हो जाती हैं कि अपने-अपने भक्तों की हर मांग पूरी कर देती हैं। मित्र बूटीनाथ तो आजकल घर ही नहीं जाते। चौबीसों घंटे देवियों को प्रसन्न करने में जुटे पड़े हैं। हां, तो मित्रों आपका क्या कार्यक्रम है?








X--------X


                               रामलीला-एक साझी संस्कृति
श्राद्धों के आते ही देशभर में रामलीलीओं की झड़ी शुरू हो जाती है। कनागतों का सीजन तो खाने-पीने का सीजन है। पितरों के नाम पर चकाचक खाओ। खुद खाओ, पंडितों को खिलाओ और पितरों को खिलाओ। गाय, कौवे, पशु, पक्षी सभी तृप्त हो जाते हैं। वातावरण में इमरती की गंध ही सुंघाईपड़ती है। मिलावट के दौर में मिलावटी इमरती खाकर अनेक जजमान भी पितर हो जाते हैं।
इस बरस मौसम बहुत मौसमी रहा। भयंकर गर्मी, गर्मी के बाद खुलकर बारिश। धुआंधार बारिश। फिर प्रभु का कोप। बाढ़। बाढ़ भी कोई मामूली नहीं-प्रकृति का रौद्र रूप भयानक रूप। आदमी की प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की जबरदस्त प्रतिक्रिया। भयानक तबाही।
उधर कामनवेल्थ गेम्स की तैयारियां। तैयारियों में वेल्थ का कामन गोरखधंधा। बंटी रेवड़ियां बांट रहा था अंधा।अफसरों, ठेकेदारों, मंत्रियों, पदाधिकारियों की पीढ़ी की पीढ़ी तर गईं। और इसी बीच ऐतिहासिक फैसला रामलला प्रकट हो गए। उनको भी परमानेंट फ्लैट आवंटित हो गया। बेचारे आधी सदी से ठीक से सो भी नहीं पाए थे। लेकिन महत्वपूर्ण बात ये रही कि उनके दोनों बेटों ने बड़ी संजीदगी से निर्णय को स्वीकारा। मठाधीश नेता ठगे से रह गये।अरे! ये क्या हो गया? अब हमारी नेतागीरी का क्या होगा? एक मठाधीश नेता ने जरा मुंह खोला ही था कि जनता ने तुरन्त शटअप कर दिया।
खैर रामलीला देश-विदेशों में खेली जा रही हैं।अब राम बारात निकलेंगी। गांव, कस्बों, शहरों, महानगरों में। ये कोई सरकारी आयोजन नहीं है। जन-जन के मन के उत्साह, श्रद्धा (भगवान राम के प्रति) का प्रकटीकरण है।इसे सिर्फ हिन्दू ही नहीं खेलते हमारे मुस्लिम भाई भी बराबरी की हिस्सेदारी निभाते हैं।
अब आप ही बताएं कि जिन रामलला की भूमि के लिए न्यायालय में मुकदमा चल रहा था, उन्हीं रामलला की पोशाकें सादिक अली साहब सिलते हैं। भगवान राम अपने दूसरे छोटे बेटे के हाथ की पोशाकों को पसन्द करते हैं। तो कोई ड्रेस सिल रहा है, कोईफूलों का हार तैयार कर रहा है, कोई भगवान के स्वरूपों का श्रृंगार कर रहा है, कोई नगाड़ा बजा रहा है तो कोईशहनाई। कोई रामलीला का पात्र बन लीला को पूर्णता प्रदान कर रहा है।
ये वो महान देश है जहां जनता जनार्दन की दृष्टि में राम-अल्ला-गॉड-वाहे गुरु सब एक हैं। किसी एक समुदाय के नहीं। ये साझा होना ही भारतीय संस्कृति है। यहां ईद-दीवाली एक हैं। यदि भारतीय संस्कृति को मजबूत करना है तो बस एक काम करहा है-नेताओं को उनका कद दिखा दो।








X--------X









                              सावधान! रिजल्ट आ रहा है
रिजल्ट आ रहा है। सैकड़ों साल से आ रहा है। जनता मुंह फाड़कर देखती है और देखती ही रहती है। कभी ये रोक देते हैं तो कभी वो। देश भक्त नेता, पंडित-मौलवी अमन चैन की दुआएं करने लगते हैं। शांति सद्भाव बनाए रखो। इनसे कौन पूछे कि लड़ कौन रहा है? यह सद्भाव नहीं तो और क्या है कि राजनाथ रामबाबू अब्दुल की दुकान से तम्बाकू ले रहा है तो कादिर मिंया लाला जी की दुकान से मसाले खरीद रहे हैं।
हो सकता है कि जब आप ये लेख पढ़ रहे हों कोई फैसला आ जाए। फैसला? काहे का फैसला? यहां राम रहते थे या अल्लाह। फैसला वो करेंगे, जिन्होंने न राम कद देखा न अल्लाह को। फैसला वो सुनेंगे जो खुद को भी नहीं जानते। राम-अल्लाह तो दूर की कौड़ी हैं। अलबत्ता ये संतों व फकीरों से अवश्य सुना है कि राम-अल्लाह गॉड कण-कण में रहते हैं। सभी दिशाओं को रौशन करते हंै। हर एक जीव जन्तु के अस्तित्व में वे निवास करते हैं।
सन्तरी से लेकर प्रधानमंत्री तक सभी एक सुर में चिल्ला रहे हैं मामला संवेदनशील है। अरे बाबू, मामला नहीं वोट संवेदनशील हैं। सभी की अपनी-अपनी राजनीतिक दुकानें हैं। जहां रंग-बिरंगे अलग-अलग साइन बोर्ड लगे हुए हैं। कोई राम का बोर्ड लगाये है, तो कोई रहीम का। सभी दुकानें विधिवत रजिस्टर्ड हैं। सबके अपने-अपने ग्राहक हैं। सबके अपने-अपने पंडे हैं जिनके एक हाथ में माला दूसरे में डंडे हैं।
वस्तुस्थिति ये है कि वीर सुभाष, पटेल, लालबहादुर के बाद इस देश को कोई आदमकद नेता ही नहीं मिला, जिसकी पूरा मुल्क माने। जो सिर्फऔर सिर्फ मुल्क की बात करे। सबके सब बौने हैं। जैसे सर्कस में होते हैं। ये ऊल-जलूल हरकत करके पूरे मुल्क का मनोरंजन कर रहे हैं। कूद-फांद रहे हैं।
किसी को रुचि नहीं कि कोई मामला सुलझे। हर मामले को इतना उलझा देते हैं कि वह सुलझने का नाम ही नहीं लेता। मामला रामजन्म भूमि का हो, कश्मीर का हो, झारखंड का हो, नक्सलियों का हो, अरुणाचल का हो। बात भी ठीक है यदि मामले सुलझ गये तो ये नेता क्या भाड़ झोकेंगे।
अरे! गंवार से गंवार नेताओं के परिवार विदेशों में सुरक्षित हैं। ऐश कर रहे हैं और नेताजी की दुकानें हिन्दुस्तान में खुली हुई हैं। यहां रहकर ये धंधा कर रहे हैं।अरे हे, भोले जन तुम धृतराष्ट्र न बनो, आंखों से पट्टी हटाओ। इन दुष्टों, मक्कार, धूर्तों को समझो। वरना मामले-दर-मामलों के रिजल्ट यूं ही आते रहेंगे। कह दो इनसे बहुत हो गया। हम आपस में त्याग, बातचीत से मामले निपटा लेंगे। रिजल्ट आ जाए तो बताना जरूर।






X--------X




                                        कामनवेल्थ में सफाई
आजकल जिधर देखो उधर सफाईही सफाई दिखलाई दे रही है। जो सफाई कर्मचारी प्राय: सफाई के नाम पर चाय की दुकान, नगर निगम के बाहर किसी बड़े पेड़ के तले एकत्रित होकर स्थानीय से लेकर अंतर्राष्टÑीय चर्चाओं में व्यस्त रहते थे, ्आज उन्हें सड़क किनारे काम करते देख आश्चर्य हुआ। यदि ऐसा ही रहा तो हो सकता है कुछ दिनों में पूरा आगरा ही साफ न हो जाए।
बीच सड़क पर लगने वाले सब्जी के ठेल गायब दिखे। सड़कें जहां एक साइकिल लेकर गुजरने में ऐड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता था व बिल्कुल वीरान दिखीं।सड़कों के किनारे की गंदगी को बड़े ही सलीके से लेबिल किया गया था। उसके ऊपर सफेदी छिड़क कर उन्हें डेंगू रहित किया गया। प्रशासन ने सभी को उनकी हदें समझा दी हैं। किस दुकानदार को कितने दिन और कितना आगे तक सड़क पर पैर पसारने हैं।
डिवाइडरों पर से पुराना सीमेंट उखाड़ उन पर नया मसाला चिपकाया जा रहा है। सड़क पर पड़े छोटे-बड़े गड्ढों को ढूंढा जा रहा है। जो मिल जाते हैं उन पर थेगरी लगाई जा रही है।अगर सड़क पर वाहन न चलें और बारिश पड़ना बंद हो जाए तो ये थेगरियायें वर्षों चलें। कुल मिलाकर भयंकर डेंटिंग-पेंटिंग चल रही है महानगर में। मुझे एक सरकारी ठेकेदार ने बतलाया कि शरद, इस डेंटिंग पेंटिंग को मामूली न समझें। इसमें नये निर्माण से भी ज्यादा कीमत आती है।
कुल मिलाकर शहर में उत्साह ही उत्साह है। मेहमानों की खातिरदारी, उन्हें घुमाने-फिराने के नये-नये कार्यक्रम बनाये जा रहे हैं। ऐतिहासिक इमारतें तो वे देखेंगे ही। लेकिन कुछ ऐसा होना चाहिए, जिसे देख वे आंखें फाड़ देखते ही रह जाएं।
दरअसल आज मुझे हाथरस जाना पड़ा किसी काम से।अपनी ही गाड़ी से गया। सादाबाद तक तो सब कुछ सामान्य ही था। लेकिन सादाबाद से हाथरस तक पहुंचते-पहुंचते यात्रा इतनी रोमांचक हो गई कि मुझे अनेक बार प्रभु का स्मरण करना पड़ा। गाड़ी बिल्कुल सर्पीली गति से 10 किलोमीटर की गति से रेंगी। पूरी सड़क पर इतने गहरे-गहरे नालों का प्राकृतिक निर्माण हुआ था कि लगा जैसे गाड़ी पाताल में ही पहुंच गई हो। पूरे गड्ढे पानी से लबालब थे। ये गड्ढे भी इतनी सेटिंग से बने थे कि ड्राइवर को सड़क ढूंढने में कई बार गाड़ी से बाहर निकल उनकी निरीक्षण करना पड़ा। अहा! ऐसे स्थानों पर यदि हम कामनवेल्थ मेहमानों को विचरण करायेंगे तो निश्चित ही वे बड़े रोमांच का अनुभव करेंगेऔर एक लाभ ये होगा कि इनसे गुजरने के बाद वे इतना हिल चुके होंगे कि मिलावटी खाना भी हिल-हिल कर हाजमे की स्थिति को प्राप्त हो चुका होगा। आशा है प्रशासन निश्चित ही इस सुझाव पर ध्यान देगा।





X--------X




                                              हिंदी के प्रति उनकी श्रद्धा

जिस तरह बैंड-बाजे वाले साल्हग के आते ही अपनी रंग-बिरंगी पुरानी-धुरानी ड्रेसों को धुलवा कर प्रेस कराके व रफू बगैरह कराके चमकने लगते हैं, ठीक उसी तरह हिन्दी दिवस, हिन्दी सप्ताह व पखवाड़ा आते ही हिन्दी के स्वांत: सुखाय कवि, लेखक व साहित्यकार अपने-अपने पुराने धुराने कुर्ते-पायजामों को सुपर रिन व कड़क कलफ से चमका कर प्रेस कराने में जुट जाते हैं। एक कवि ने तो अपने कुर्तों पर इतना तगड़ा कल्फ लगा दिया कि पहनते वक्त उनके हाथ-पैरों ने उनमें घुसने से ही मना कर दिया। बल प्रयोग करने पर वे चुर्र-चुर्र कर चौपाइयां गाने लगे। हार कर कवि महोदय को अपने बिना कल्फ लगे कुर्ते से ही काम चलाना पड़ा।
हिन्दी दिवस हमारी राष्टÑभाषा का राजनैतिक श्राद्ध है, जिसमें व्यापार संगठनों, स्कूल, कालेज, सरकारी दफ्तर, बैंक अपनी-अपनी श्रद्धा का प्रदर्शन करते हैं। मैंने एक सरकारी दफ्तर के कर्मचारी से पूछा कि हिन्दी दिवस पर आपको कैसा लगता है। इतना सुन उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई। अरे शरद, 15 दिन मजा आ जाता है। चाय-पानी, मिठाई-नमकीन, दावतों के चलते घर पर खाने की छुट्टी हो जाती है।
फिर मेरे कान के पास मुंह लाकर बोला- हुजूर। हिन्दी के नाम पर कुछ घाघ श्रद्धालु तो अच्छा खासा धंधा भी कर लेते हैं। हिन्दी के जगह-जगह बैनर, पुरस्कार सामग्री, शाल, वस्त्र, मिठाई-नमकीन व साहित्यकार व अपने कुछ खास हिन्दी कवियों के मानदेय में से कैसे व्यक्तिगत लाभ कमाया जाता है कोई इनसे सीखे।
देखने में आया है कि जिस तरह श्राद्ध के दिनों में पंडितों की कमी हो जाती है, उसी तरह हिन्दी पखवाड़े में कवि साहित्यकार एक-एक दिन में तीन-चार आयोजनों को निपटा देते हैं। बुजुर्ग कवि प्राय: गोष्ठी में अध्यक्षता सम्हालते हैं। स्वाभिमानी साहित्यकार तो अध्यक्षता की शर्त पर ही जाते हैं। दरअसल अध्यक्ष का पद बहुत गरिमामय होता है। जो कवि बहुत ही वरिष्ठ होते हैं, चाहे वे गरिष्ठ हों या न हों, अध्यक्ष अवश्य बनाये जाते हैं।अध्यक्षता का प्रमुख लाभ ये होता है कि उसे कम पढ़ना होता हैऔर अंत में पढ़ना होता है।दरअसल उसका प्रमुख उपयोग कार्यक्रम के समापन की घोषणा के लिए होता है।
जो व्यावसायिक अध्यक्ष होते हैं वे सभी कवि एवं वक्ताओं की दो-दो पंक्ति से सहमत-असहमत होते हुए इन्हें नीबू की तरह निचोड़कर संतरे का रस बना देते हैं। इस दौरान मैंने बुजुर्ग कवि व साहित्यकारों को अधिक व्यायाम, योगासन करते देखा है। वे घर पर प्राय: खाना भी अत्यन्त न्यून मात्रा में ग्रहण करते हैं ताकि इन हिन्दी उत्सवों में मिलावटी व नकली मिठाई व खाद्य सामग्री को आसानी से पचा सकें। इनमें अक्सर वही वरिष्ठ एवं गरिष्ठ साहित्यकार बुलाये जाते हैं जो हिन्दी की तरह राष्टÑीय धरोहर घोषित हो चुके हैं।




X--------X




                                         नकली मन भायो रे, सावन आयो रे

जितने भइया थे सब ‘भाई’ बन गये।आजकल विधानसभा और संसद में महंगाई की गइया चरा रहे हैं। जनता उनकी बहन है। सो बहिनाओं ने भाइयों को वोट रूपी राखी बांध राजधानियों में भेज दिया। कह दिया भइया मेरे राखी के बंधन को निभाना। लेकिन भाई लोग निभाने की जगह भुनाने में लगे पड़े हैं।
कोई कामनवेल्थ में से वेल्थ निकाल रहा है, कोई बसों में से पेट्रोल निकाल रहा है। कोई सड़क में से गिट्टी निकाल रहा है। कोई दवाइयों में से टानिक निकाल रहा है। शिक्षा वाला भइया शिभा के नए-नए मंदिर खुलवा रहा है। मिड-डे में से मील खा रहा है। कानून वाला भइया कानून में से व्यवस्था को ही खा गया। बचा खुचा भइया के मुर्गे खा रहे हैं। इस सावन में हरा चश्मा और लगा लिया है, सो सावन में अंधों को हरा हरा नजर आ रहा है। जनता के बीच जाते हैं तो सावन के गीत सुनने को कान में माइक्रोफोन लगा लिया है, जनता बदहवास चिल्ला रही है। वे समझ रहे हैं कि सावन की मल्हार पर ठुमके लगा रही है। वे मुस्कराकर और हाथ हिला कर चले जाते हैं। शायद कुछ ये कहते हुए अरी बहिना अभी वोट वाला सावन नहीं आया है। जैसे ही आयेगा फिर राखी बंधवायेंगे। लेकिन बाजार तो बाजार है बिना बिजली के ही दमक रहे हैं। दुकानें नकली व चाइना आइटमों से लदी पड़ी हैं। हमारी नकली बनाने की स्पीड को देख चाइना वाले पानी भर रहे हैं। चीन में लेबर सस्ती है इसलिए माल सस्ता है। हमारे यहां कच्चा माल मामूली से पैसों का है, इसलिए खस्ता है।
हम बिना भैंस-गाय के दूध बना दें। बिना घी, खोवा के घेवर बना दें। घोड़े-गधों की लीद से मसाले बना दें। बिना नाम, पते, ठिकाने के पासपोर्ट बना दें। अंगूठा छाप इंजीनियरिंग व डाक्टरी कालेज चला दें। बाबू हमारा कौन क्या बिगाड़ेगा?
यदि सरकार के संरक्षण में नकली ब्रांड इण्डस्ट्रीज को ऐसा ही प्रोत्साहन मिलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हम विश्व के नम्बर एक डुप्लीकेट प्रोडक्ट के एक्सपोर्टर बन जाएंगे।आगे कभी नकली माल के लाभों की चर्चा करेंगे।