शुक्रवार, जुलाई 08, 2011

कवितायेँ

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  1. जब कृश्नचंदर का गधा भटक गया दिल्ली में
    नई दिल्ली।
    Story Update : Monday, December 12, 2011 12:22 AM

    एक बार मैं चांदनी चौक से गुजर रहा था कि मैंने एक सुन्दर युवती को देखा, जो तांगे में बैठी पायदान पर पांव रखे अपनी सुन्दरता के नशे में डूबी चली जा रही थी और पायदान पर विज्ञापन चिपका हुआ था, असली शक्तिवर्धक गोली इन्द्रसिंह जलेबी वाले से खरीदिए!’ मैं इस दृश्य के तीखे व्यंग्य से प्रभावित हुए बिना न रह सका और बीच चांदनी चौक में खड़ा होकर कहकहा लगाने लगा।

    लोग राह चलते-चलते रुक गए और एक गधे को बीच सड़क में कहकहा लगाते देखकर हंसने लगे। वे बेचारे मेरी धृष्ट आवाज पर हंस रहे थे और मैं उनकी धृष्ट सभ्यता पर कहकहे लगा रहा था। इतने में एक पुलिस के संतरी ने मुझे डण्डा मारकर टाउन हॉल की ओर धकेल दिया। इन लोगों को मालूम नहीं कि कभी-कभी गधे भी इन्सानों पर हंस सकते हैं।

    दिल्ली में आने वालों को यह याद रखना चाहिए कि दिल्ली में प्रवेश करने के बहुत से दरवाजे हैं। दिल्ली दरवाजा, अजमेरी दरवाजा, तुर्कमान दरवाजा इत्यादि। परन्तु आप दिल्ली में इनमें से किसी दरवाजे के रास्ते भीतर नहीं आ सकते। क्योंकि इन दरवाजों के भीतर प्रायः गायें, भैंसें, बैल बैठे रहते हैं या फि र पुलिस वाले चारपाइयां बिछाए ऊंघते रहते हैं। हां, इन दरवाजों के दायें-बायें बहुत सी सड़के बनी हैं, जिन पर चलकर आप दिल्ली में प्रवेश कर सकते हैं।

    अंग्रेजों ने दिल्ली में भी एक इंडिया गेट बनाया है, लेकिन इस गेट से भी गुजरने का कोई रास्ता नहीं है। दरवाजे के ईर्द-गिर्द घूम-फिरकर जाना पड़ता है। संभव है, दिल्ली के घरों में भी थोड़े दिनों में ऐसे दरवाजे लग जाएं; फि र लोग खिड़कियों में से कूदकर घरों में प्रवेश किया करेंगे।

    दिल्ली में नई दिल्ली है और नई दिल्ली में कनाटप्लेस है। कनॉट प्लेस बड़ी सुन्दर जगह है। शाम के समय मैंने देखा कि लोग लोहे के गधों पर सवार होकर इसकी गोल सड़कों पर घूम रहे हैं। यह लोहे का गधा हमसे तेज भाग सकता है, परन्तु हमारी तरह आवाज नहीं निकाल सकता।

    यहां पर मैंने बहुत से लोगों को भेड़ की खाल के बालों के कपड़े पहने हुए देखा है। स्त्रियां अपने मुंह और नाखून रंगती हैं, और अपने बालों को इस प्रकार ऊंचा करके बांधती हैं कि दूर से वे बिल्कुल गधे के कान मालूम होते हैं। अर्थात् इन लोगों को गधे बनने का कितना शौक है, यह आज मालूम हुआ। कनॉट प्लेस से टहलता हुआ मैं इंडिया गेट चला गया।

    यहां चारों ओर बड़ी सुन्दर घास बिछी थी और उसकी दूब तो अत्यंत स्वादिष्ट थी। मैं दो-तीन दिन से भूखा तो था ही, बड़े मजे से मुंह मार-मारकर चरने लगा। इतने में एक ज़ोर का डंडा मेरी पीठ पर पड़ा। मैंने घबराकर देखा, एक पुलिस का सिपाही क्रोध भरे स्वर में कह रहा था ‘‘यह कमबख्त गधा यहां कैसे घुस आया?’’ मैंने पलटकर कहा, ‘‘क्यों भाई, क्या गधों को नई दिल्ली में आने की मनाही है?’’

    (कृश्नचंदर लिखित एक गधे की आत्मकथा से)

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