सोमवार, जून 06, 2011

सरकारी ढाबा और बाबा

सरकारी ढाबा और बाबा


                                               इस बेचारी सरकार की, तिस पर भी केंद्र सरकार की बड़ी आफत है | बेचारी करे तो क्या करे | जो आता है वो ही दहाड़ता चला आता है | तरह-तरह की धमकियाँ देता है, अल्टीमेटम देता है| इधर राज्य सरकारें भी कम नहीं | हमारी ये-ये मांगें हैं - पूरा करो | इतना बजट दो और ना जाने क्या-क्या |
                                 सोचो ! इस प्रजातंत्र के नाम पर एक राजा को धमकियाँ ! एक बिल्कुल ज़मीनी आदमी अन्ना आ बैठा भूखा मरने को राजा की चौखट पर | ये करो ...वो करो... वरना... में तो मरा भूखा | किसी तरह से राजा-रानी ने अपने अति-धूर्त वार्ताकारों को उस भूखे को पटाने भेजा | उन्होंने येन-केन प्रकारेण झूट-सच बोलकर उसे खाने-पीने पर राजी किया |
                                 सरकार ने चैन की सांस भी ना ली थी कि इस बार एक बाबा लगा दहाड़ने | पहुँच गया...बाबा-लोगों की टोली लेकर | तख्त बिछाया और करने लगा अनुलोम-विलोम | कराने लगा सुबह-ही सुबह राजा-रानी, सिपह-सालारों को कपालभाती |
                                
अनुलोम-विलोम व कपालभाती से सरकार को कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन जब फूंक छोड़ते-छोड़ते वो काले धन व भ्रष्टाचार विरोधी आंधी में बदलने लगी तो राजा का सिंहासन डोलने लगा | सरकारी महल के बरामदों में षड्यंत्रों की खिचड़ी पकने लगी | विषाक्त वक्तब्यों के घृत के छोंक लगने लगे | सरकारी मुस्टंडे अपने-अपने दण्डों को तेल पिलाने लगे | पुलसिया रथों को ईंट-पत्थरों से भरने लगे |
                                 अचानक अर्ध रात्री को समस्त सरकारी अमला साधू-सन्यासियों पर भूखों की तरह टूट पड़ा | राजे-महाराजे व रानी...बराक ओबामा की तरह अपने-अपने टीवी सेटों पर "ऑपरेशन-बाबा" देख रहे थे | सुना है उन्हें भी बाबा चाहिए था..वो भी मृत | लेकिन बाबा अपनी योग-शक्ति से अदृश्य हो गया |
                                 निहत्थे सत्याग्रहियों पर आंसू-गोले, डंडे-ईंट चला कर सरकार ने दिल्ली के सत्याग्रह-स्थल को जलियाँ वाला बाग़ में बदल दिया | और फिर राष्ट्रीय मीडिया पट्ट पर प्रकट हुए भारत सरकार के अंतर्राष्ट्रीय-दिग्दिशाओं को जीतने वाले अनेकों झूठावतार-भ्रष्टातार और करने लगे अपने दिग्विजयी असत्य तप का प्रचार |
                                 जिसे देखो वो ही सरकार को कोस रहा है, लेकिन मुझे इसमें कहीं भी खोट नज़र नहीं आ रहा | सरकार को देश चलना है | गरीब मंत्रियों-अफसरों को अमीर बनाना है | अपने पुराने मित्रों का धन विदेशी बैंकों में बचाना है | इस गरीब जनता को महंगाई के दलदल में तैरना सिखाना है |
                                 वो तो प्रभु की कृपा कहिये कि षड़यंत्र के सहारे ही सही, वो इस बाबा के चक्कर से निकल आई....वरना ये बाबा !! सभी दुष्टों को... भ्रष्टों को... नि
कृष्टों को.. ह्रष्ट-पुष्टों को फांसी पर लटकवा कर ही मानता........!!!!!!!

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